Wednesday, August 29, 2018

कजरी तीज 2018: जानिए शुभ मुहूर्त और पूजन विधि और व्रत कथा

करजी तीज को बड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है। कजरी तीज के बारे में मान्यता है कि इस दिन ही मां पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त किया था। इसके लिए उन्हें काफी कठोर तपस्या करनी पड़ी थी। कजरी तीज के दिन सुहागिनों को भगवान शिव और पार्वती की पूजा अर्चना करनी चाहिए। इस बार 29 अगस्‍त यानी कल कजरी तीज मनाई जाएगी।

शुभ मुहूर्त 

तृतीया तिथि आरंभ: 28 अगस्त 2018 को रात 8 बजकर 42 मिनट 
तृतीया तिथि समाप्‍त: 29 अगस्त 2018 को रात 9 बजकर 40 मिनट

पूजन विधि

यह व्रत पूरे दिन निराजल रह कर रखा जाता है और फिर चंद्रोदय के बाद व्रत खोला जाता है। इस दिन गाय की भी पूजा की जाती है। गाय को रोटी, गुड़, पालक का भोजन कराया जाता है। इस दिन महिलाएं एकत्र होकर कजरी गीत भी गाती हैं। इस दिन नीमड़ी माता की पूजा का भी विधान है। एक तालाब जैसा बना कर उसके पास नीम की टहनी को रोप दिया जाता है। तालाब में दुग्ध और जल डालकर किनारे एक घी का दीपक जलाया जाता है। एक थाली में फूल, हल्दी, अक्षत आदि रखते हैं। एक चांदी के गिलास में दूध भर लेते हैं फिर नीमड़ी माता की पूजा करते हैं। उनको अक्षत चढ़ा कर जल के छीटे देते हैं। फल और द्रव्य चढ़ाते हैं। फिर दीपक के उजाले को प्रणाम करते हैं। चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्ध्य देकर दूध और जल चढ़ाते है। 

व्रत कथा

एक गांव में गरीब ब्राह्मण का परिवार रहता था। ब्राह्मण की पत्नी ने भाद्रपद महीने में आने वाली कजली तीज का व्रत रखा और ब्राह्मण से कहा, हे स्वामी आज मेरा तीज व्रत है। कहीं से मेरे लिए चने का सत्तू ले आइए लेकिन ब्राह्मण ने परेशान होकर कहा कि मैं सत्तू कहां से लेकर आऊं भाग्यवान। इस पर ब्राहमण की पत्नी ने कहा कि मुझे किसी भी कीमत पर चने का सत्तू चाहिए।

इतना सुनकर ब्राह्मण रात के समय घर से निकल पड़ा वह सीधे साहूकार की दुकान में गया और चने की दाल, घी, शक्कर आदि मिलाकर सवा किलो सत्तू बना लिया। इतना करने के बाद ब्राह्मण अपनी पोटली बांधकर जाने लगा। तभी खटपट की आवाज सुनकर साहूकार के नौकर जाग गए और वह चोर-चोर आवाज लगाने लगे।

ब्राह्मण को उन्होंने पकड़ लिया साहूकार भी वहां पहुंच गया। ब्राह्मण ने कहा कि मैं बहुत गरीब हूं और मेरी पत्नी ने आज तीज का व्रत रखा है। इसलिए मैंने यहां से सिर्फ सवा किलो का सत्तू बनाकर लिया है। ब्राह्मण की तलाशी ली गई तो सत्तू के अलावा कुछ भी नहीं निकला। उधर चांद निकल आया था और ब्राह्मण की पत्नी इंतजार कर रही थी।

साहूकार ने कहा कि आज तुम्हारी पत्नी को मैं अपनी धर्म बहन मानूंगा। उसने ब्राह्मण को सातु, गहने, रुपये, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर अच्छे से विदा किया। सभी ने मिलकर कजली माता की पूजा की। जिस तरह ब्राह्मण के दिन फिरे वैसे सबके दिन फिरे।

No comments:

Post a Comment

Dhanteras 2023: 10 नवंबर को है धनतेरस, जानें इस दिन खरीदारी का शुभ मुहूर्त, इस समय पूजा करने से होगी धन की वर्षा

Dhanatrayodashi 2023: धनतेरस का त्योहार 10 नवंबर को है. मान्यता है कि इस दिन भगवान धनवंतरी का जन्म हुआ था. इस दिन घर में कुछ खास चीजें ल...